सिद्धाश्रम पत्रिका के बारे में
कहावत है कि ‘साहित्य समाज का दर्पण है।’ अतः सिद्धाश्रम पत्रिका को सिद्धाश्रम का दर्पण कहें, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। सिद्धाश्रम स्थापना के समय कुछ प्रारंभिक वर्षों तक ‘सिद्धाश्रम संदेश’ के रूप में एवं 2008 से ‘सिद्धाश्रम पत्रिका’ के रूप में पुनः प्रकाशित इस ज्ञानवर्धक पत्रिका के माध्यम से आज समाज में एक महान विचारधारा का प्रचार-प्रसार और जनजागृति का अनूठा कार्य हो रहा है।