संक्षिप्त जीवन परिचय परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज का
जब-जब इस पावन पवित्र धरा पर अधर्म एवं असुरत्व अपना प्रभुत्व स्थापित कर लेता है, तब-तब प्रकृतिस्वरूपा माता भगवती जगत् जननी जगदम्बा जी की इच्छानुसार सिद्धाश्रम के संस्थापक-संचालक परमहंस योगेश्वर ब्रह्मर्षि स्वामी सच्चिदानंद जी महाराज अपने विभिन्न पात्र शिष्यों के साथ विभिन्न स्वरूपों में इस धरा पर जन्म लेकर सत्यधर्म का मार्ग प्रशस्त करते हैं तथा असुरत्व के विनाश में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। साथ ही समस्त जीवों को सुख-शान्ति प्रदान करते हुए मानव को मानवता का पाठ पढ़ाकर आत्मतत्त्व का परमसत्ता से संबंध का ज्ञान कराते हैं तथा उसे मुक्ति के मार्ग की ओर अग्रसर करते हैं।
उसी परम्परा को एक बार पुनः आगे बढ़ाते हुए वर्तमान में सिद्धाश्रम सिरमौर स्वामी सच्चिदानंद जी महाराज ही युग चेतना पुरुष परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के रूप में अवतरित हुए हैं तथा समाज के बीच ऋषित्व जीवन जीते हुए उसको भक्ति, ज्ञान व आत्मशक्ति का पूर्ण ज्ञान प्रदान कर रहे हैं तथा माता भगवती आदिशक्ति जगत् जननी श्री दुर्गा जी की ममतामयी चेतना जन-जन में स्थापित करने का कार्य कर रहे हैं। साथ ही इस भूतल पर एक ऐसे साधनात्मक चैतन्य दिव्य शक्ति स्थल पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम धाम का निर्माण भी कर रहे हैं, जो आने वाले समय में विश्व की धर्मधुरी सिद्ध होगी। परम पूज्य सद्गुरुदेव जी महाराज इस स्थल पर माता भगवती आदिशक्ति जगत् जननी जगदम्बा की मूल चेतना की स्थापना करेंगे एवं इसी स्थल पर अपनी योगाग्नि से पंचज्योति प्रज्वलित करेंगे। इस तपस्थली की प्रारम्भिक रूपरेखा को समझकर समाज स्वतः ही युग चेतना पुरुष परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के साधनात्मक एवं जनकल्याणकारी जीवन की झलक प्राप्त कर रहा है। वैसे तो आपका संक्षिप्त परिचय दे पाना भी किसी के वश की बात नहीं है, क्योंकि एक योगी के विचार, चिन्तन व सामर्थ्य की झलक भी प्राप्त कर पाना कठिन होता है, फिर भी भौतिक जगत् में आपके वर्तमान जीवन की कुछ प्रारम्भिक जानकारी दे रहे हैंं।
पारिवारिक पृष्ठभूमि –
आपका जन्म दिनांक 09 दिसम्बर 1960, दिन शुक्रवार को सुबह 09: 50 बजे उत्तर प्रदेश प्रान्त की दो पवित्र नदियों (गंगा व यमुना) के मध्य स्थित फतेहपुर जिले के भद्रवास (भदवा) गांव में एक प्रतिष्ठित, धर्मनिष्ठ ब्राह्मण कृषक परिवार में हुआ है। आपके पिता जी के गृहस्थ जीवन का नाम श्री रामबली शुक्ल तथा सन्यस्त जीवन का नाम श्री रामप्रसाद आश्रम जी महाराज है। उन्होंने अपने गृहस्थ जीवन के कर्तव्यों का निर्वाह करने के उपरान्त, गृहस्थ जीवन त्यागकर, शेष जीवन वाराणसी में दंडी संन्यासी के रूप में व्यतीत किया और अन्तिम समय में पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम में रहते हुये दिनांक 01-03-2007, दिन गुरुवार, फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी, पुष्यनक्षत्र, प्रदोष व्रत के महत्त्वपूर्ण दिन ब्रह्ममुहूर्त में प्रातः 4 बजे ध्यानावस्था में अपने स्थूल शरीर का त्याग करके सूक्ष्म सिद्ध जगत् में स्थान प्राप्त किया है। उनकी समाधि आश्रम में ही समधिन नदी के तट पर स्थित है। आपकी माता जी का नाम श्रीमती रामकली शुक्ला है, जिन्होंने आध्यात्मिक विचारधारा से परिपूर्ण अपने जीवन की यात्रा घर में ही रहकर पूर्ण की तथा दिनांक 23-10-1997 को शुभ मुहूर्त में अपने शरीर का त्याग करके प्रकृति में विलीन हो गईं। आपके चाचा श्री रामप्रसाद शुक्ल जी भी अपने गृहस्थ जीवन के कर्तव्यों को पूर्ण करके लगभग पन्द्रह वर्ष तक साधु जीवन व्यतीत करने के बाद जुलाई 1995 में शरीर का त्याग कर चुके हैं। आपके बड़े दादा श्री रामसेवक शुक्ल जी ने भी अपने गृहस्थ जीवन के कर्तव्यों को पूर्ण करके लगभग 20 वर्षों तक दण्डी संन्यासी का जीवन व्यतीत किया तथा अपने स्थूल शरीर को सूक्ष्म में विलीन कर दिया है। इस प्रकार आपके पूरे परिवार का वातावरण पूर्ण साधनात्मक रहा है एवं घर पर सुबह-शाम नित्य आरती-पूजन का कार्यक्रम सदैव चलता रहा है।
बाल्यकाल –
परम पूज्य सद्गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के बचपन का नाम श्री रामबरन शुक्ल है। आप छः भाइयों में सबसे छोटे हैं व उनके बीच दो बहिनें भी हैं। आपके जन्म से ही परिवार में आध्यात्मिक वातावरण दिन-प्रतिदिन जाग्रत् होता चला गया। बचपन से ही आप अधिकांशतः माता भगवती दुर्गा जी की साधना-उपासना में रत रहते थे। आपके बचपन की सैकड़ों छोटी-छोटी आध्यात्मिक घटनाएं आपके परिवार व अन्य लोगों को आपके अवतारी पुरुष होने का अनुभव कराती थीं। अनेकों दिव्य महापुरुषों एवं साधु-संतों ने बचपन में ही योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज को देखकर उनके प्रभावक योगों तथा भविष्य में आपके द्वारा सन्यस्त जीवन व्यतीत करके विश्व अध्यात्म जगत् को आध्यात्मिक चिन्तन देने के योगों के विषय में बतलाया था। कुछ संतों ने तो आपके माता-पिता से आपको मांगकर अपने साथ सन्यस्त जीवन में रखने का भी आग्रह किया था, किन्तु माता-पिता ने स्नेहवश उनके आग्रह को किसी भी प्रकार से स्वीकार नहीं किया।
आपने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा निज ग्राम-भद्रवास (भदवा) में ही प्रारम्भ की। अपनी कक्षा में आप सबसे मेधावी छात्र थे। गाँव के चारों तरफ अनेकों धार्मिक स्थल, कुटिया व वाटिकायें बनी हुयी थीं, जहां पर साधु, सन्त, महात्मा बाहर से आकर सत्संग किया करते थे। विद्यालय में अंतिम घण्टा खेल का हुआ करता था, किन्तु उसे छोड़कर आप सत्संग में चले जाते और बड़े चाव से उन महात्माओं के वचनों का रसपान करते थे। विद्याध्ययन के साथ-साथ आप अधिकतर अपनी साधनाओं में रत रहते थे। युवावस्था आते-आते परम पूज्य गुरुदेव जी महाराज अपने भाइयों में सबसे छोटे होने के बावजूद अपनी महत्त्वपूर्ण साधनात्मक स्थिति स्थापित कर चुके थे। परिवार के लोग भी उनके चिन्तनों एवं विचारों को महत्त्व देने लगे थे। एक निर्धारित शिक्षा प्राप्त करने के बाद परिवार के आग्रह के बावजूद पूज्य गुरुदेव जी महाराज ने आगे की शिक्षा प्राप्त करने से स्पष्ट इनकार कर दिया और उन्हें अवगत कराया कि ‘‘अब आगे की शिक्षा की आवश्यकता मुझे नहीं है। यह शिक्षा मेरे उपयोग की नहीं होगी। अब मैं अपने कर्म से उपार्जित धन के माध्यम से अपना जीविकोपार्जन करूंगा और पूर्ण आध्यात्मिक जीवन जीते हुये माता भगवती जगत् जननी दुर्गा जी की साधना-उपासना में अपने आपको रत रखना चाहता हूँ । यही मेरे जीवन का लक्ष्य हैै। समाज में सामान्य आवश्यकता की पूर्ति हेतु मैं सामाजिक शिक्षा प्राप्त कर चुका हूँ। अब माता भगवती की प्राप्ति ही मेरे जीवन का लक्ष्य है तथा उनको प्राप्त करके उनके द्वारा प्रदत्त शिक्षा, ज्ञान एवं चिंतन ही मेरी आगे की शिक्षा होगी।‘‘
कर्मक्षेत्र –
इसके उपरान्त युग चेतना पुरुष परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज निरन्तर माता भगवती दुर्गा जी की साधना-आराधना में रत रहने लगे। जब आप मात्र सात या आठ वर्ष के थे, तभी से आपको सैकड़ों बार स्वप्नों में दिव्य स्थलों व दिव्य विभूतियों के दर्शन हुआ करते थे। इनमें अनेकों दिव्य स्थान आपके पूर्व जीवन से जुड़े हुए थे। उन्हीं क्षेत्रों में मध्य प्रदेश का शहडोल भी एक महत्त्वपूर्ण जिला था। बचपन के इन्हीं चिन्तनों व आगे की ध्यान-साधना से प्रेरित होकर एक बार आप शहडोल भ्रमण के लिए आये और यहां के महत्त्वपूर्ण साधनात्मक स्थलों से आकर्षित होकर आपने यहीं पर रहने का निर्णय लिया। यहीं से आपने आगे की आध्यात्मिक यात्रा प्रारम्भ की। चूंकि पूज्य गुरुदेव जी महाराज अपने जीवन में परिवार का भी आर्थिक ऋण नहीं लेना चाहते थे, जबकि पांच बड़े भाई व माता-पिता की पर्याप्त आर्थिक सम्पन्नता से परिपूर्ण स्थिति थी। परन्तु, सर्वस्व त्यागकर आपने शहडोल शहर में ही स्टील फर्नीचर की एक दुकान खोलकर अपने जीविकोपार्जन का एक माध्यम बना लिया। मात्र दो ही वर्षों में आपने एक और स्टील फर्नीचर के निर्माण का कारखाना खोलकर व्यापारिक क्षेत्र में अपनी महत्त्वपूर्ण स्थिति स्थापित की। व्यापार में केवल आवश्यक समय देने के अलावा अधिकांश समय में माता भगवती दुर्गा जी की अखण्ड साधनाओं के अनेकों अनुष्ठानों को पूर्ण किया।
पूज्य सद्गुरुदेव योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज की लिप्तता व्यापार में न होकर केवल सतत माता भगवती की साधना-आराधना में रही। आपके जीवन के लक्ष्य के मूल वाक्य (कोटेशन) आपकी मोटरसाइकिल पर भी लिखे रहते थे, जिनमें ‘‘जै भवानी‘‘, ‘‘लक्ष्य पर पहुँचे बिना, ऐ पथिक, विश्राम कैसा ?‘‘ तथा ‘‘ साधना के तीन आधार- भक्ति, ज्ञान व आत्मशक्ति‘‘ जैसी प्रेरक पंक्तियाँ लिखी रहती थीं। यह उस समय की आपकी विचारधारा व लक्ष्य को स्पष्ट करती थीं। आपने जहां युवावस्था में कोट-पैण्ट, सूट, जैसे वस्त्रों का उपयोग किया, वहीं बाद में उनका पूर्णतया त्याग करके धोती-कुर्ता व गले में माता भगवती दुर्गा जी से आशीर्वादस्वरूप निर्देशित ‘‘रक्षा कवच‘‘ डालकर पूर्णरूप से सादा जीवन व्यतीत करते हुए अपनी साधनात्मक यात्रा को सतत और गति देते रहे।
गृहस्थ में प्रवेश –
आपकी इच्छा न होने के बाद भी परिवार के दबाव व अपने संस्कारों एवं योगों को समझकर वर्ष 1984 में अपने जन्म स्थान से मात्र 5 किलोमीटर दूर गाँव कोरइयाँ में एक योग्य धर्मनिष्ठ ब्राह्मण श्री बैजनाथ प्रसाद त्रिपाठी जी की पुत्री सुश्री मनोरमा जी से विवाह करके गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया, किन्तु गृहस्थ जीवन में भी आप सदैव निर्लिप्त ही रहे।
माता भगवती से साक्षात्कार –
आप अपने आपको केवल माता आदिशक्ति जगत् जननी दुर्गा जी की साधना के बंधनों में ही बांधकर सतत अपने जीवन को तपाते रहे। उसके बाद लगातार व्यापार को साथ में देखते हुए भी कई कठिनतम प्राणघाती साधनाओं, यज्ञों एवं अखण्ड अनुष्ठानों को सम्पन्न करके माता भगवती जगत् जननी माँ दुर्गा जी के प्रत्यक्ष दर्शन एवं उनका स्पर्श प्राप्त किया तथा अपने पूर्व अर्जित स्वस्वरूप ज्ञान को प्राप्त किया।
इस प्रकार आपने माता भगवती के द्वारा प्रदत्त ज्ञान के बल पर अपने जीवन के सभी पहलुओं को समझा व इस जीवन के जन्म लेने के उद्देश्य को जाना तथा माता भगवती का आशीर्वाद प्राप्त करके उसी दिशा में बढ़ने का संकल्प एवं चिंतन माता के चरणों में लिया। उसी समय माता भगवती ने आपको ‘‘शक्तिपुत्र‘‘ नाम से संबोधित किया और उनके द्वारा उच्चारित नाम को पूज्य सद्गुरुदेव जी महाराज अपने साथ जोड़कर इस नाम की सार्थकता के साथ कर्मक्षेत्र से जुड़ गये।
अपनी हठपूर्ण स्वाभाविक स्थिति ‘‘साधना सिद्ध होगी या शरीर नष्ट होगा‘‘ के संकल्पों को लेकर साधना सम्पन्न करने वाले योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज को माँ ने समय से तीन वर्ष पहले आकर दर्शन दिये थे। मगर उन्होंने तीन वर्षों तक समाज में साधना सिद्धि के रहस्य बताने व उपयोग करने पर रोक लगा दी थी व अवगत कराया था कि आने वाले तीन वर्षों में तुम्हें जरूरत से ज्यादा संघर्षों का सामना करना पड़ेगा। माँ के कथनानुसार पूज्य गुरुदेव जी महाराज को उन तीन वर्षों में जरूरत से ज्यादा संघर्षों का सामना करना पड़ा था, मगर आपने उस अवधि में माँ के चरणों में दिए हुए वचन को तोड़ा नहीं। जिन संघर्षों व क्षतियों से वे अपने आपको बड़े आराम से बचा सकते थे, उन पर भी ध्यान नहीं दिया और तीन वर्ष पूर्ण होने के बाद पुनः एक निर्धारित समय पर माता भगवती ने दर्शन देकर आपको आगे का जीवन समाज के लिए जीने की प्रेरणा दी। उन्होंने अवगत कराया कि ‘‘इन तीन वर्षों के संघर्षों में साधना का उपयोग न करके तूने वह पात्रता प्राप्त कर ली है कि भविष्य में भी निज स्वार्थों में तू साधनाओं का उपयोग न करके समस्त तपबल व मेरे आशीर्वाद को जनकल्याण के लिए ही समर्पित करेगा।‘‘ और, उस पात्रता को लेकर योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज निज लाभों व मान-अपमान से अपने आपको परे रखकर माँ के चिंतन एवं निर्देशन के अनुसार एक-एक पल जनकल्याण के लिए जीने लगे। अब तक पचासों लाख शिष्य पूज्य गुरुदेव जी महाराज से जुड़े चुके हैं। उन्होंने पूज्य गुरुदेव जी महाराज के त्यागपूर्ण जनकल्याण में समर्पित जीवन को देखा व समझा है। आपके द्वारा घटित की गयी सैकड़ों घटनाएं आपके तपबल व सामर्थ्य का पूर्ण प्रमाण हैं।
जनकल्याण की तड़प –
पूज्य सद्गुरुदेव युग चेतना पुरुष परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने वर्ष 1987 में अपने व्यापार को पूर्णतः बंद कर दिया तथा शेष जीवन जनकल्याण के लिए समर्पित करने का संकल्प लेकर आगे की यात्रा तय की। पूज्य गुरुदेव जी महाराज को माता भगवती जगत् जननी माँ दुर्गा जी ने जीवन के सभी पहलुओं में पूर्णता प्रदान करके महाशक्तियज्ञों को करने की क्षमता प्रदान की। उन्होंने सिद्धाग्नि व अनेकों योगाग्नि का ज्ञान प्रदान करके आपको पूर्ण तत्त्वज्ञान से परिपूर्ण किया। अपने जीवन में साधनात्मक तपबल की पूर्णता प्राप्त करने के बाद भी पूज्य गुरुदेव श्री शक्तिपुत्र जी महाराज में किसी भी प्रकार का गर्व या घमण्ड स्पर्श नहीं किया और वे अपने आपको सामान्य रखकर जनकल्याण के चिन्तन के साथ समाज के अनेक धर्माधिकारियों के पास गये। उन्हें अपने साधनात्मक तपबल व जनकल्याण करने की क्षमता से अवगत कराया। मगर, भटकाव व अज्ञानता तथा केवल मठों के पद में चूर उन मठाधीशों ने पूज्य गुरुदेव जी महाराज के सामान्य तौर पर दिये गये चिन्तनों को पकड़ने का प्रयास नहीं किया। उन्होंने पूज्य गुरुदेव जी महाराज की साधनात्मक क्षमता का उपयोग समाज का शोषण करने वाली अपनी नीतियों को मजबूत करने तथा धन प्राप्त करके अपने मठों की भव्यता बढ़ाने में करना चाहा। इस प्रकार लगभग एक वर्ष तक आपने सभी क्षेत्रों में यात्रा की और देखा कि प्रायः सभी धर्माधिकारी धर्म की आड़ में समाज के बीच धोखाधड़ी, ठगी एवं लूटपाट कर रहे हैं। यह देखकर पूज्य गुरुदेव जी महाराज की अन्तरात्मा तड़प उठी और तब उन धर्माधिकारियों, मठाधीशों के चक्कर में न पड़कर, शान्ति के साथ अपने आपको पूर्ण सन्तुलित किया और माता भगवती जगत् जननी दुर्गा जी द्वारा प्रदत्त महाशक्तियज्ञों की पात्रता के माध्यम से ही जनकल्याण का कदम उठाया।
महाशक्तियज्ञ –
पूज्य सद्गुरुदेव जी महाराज ने समाज के लिए 108 महाशक्तियज्ञों को करने का संकल्प ’माँ’ के चरणों में लिया था। ऐसे एक यज्ञ को पूर्ण करने में 11 दिन का समय लगता है, जिसमें प्रतिदिन 8 घंटे अग्निकुंड के समक्ष निराहार एक आसन पर बैठकर पूर्ण प्रज्वलित सिद्धाग्नि में विशेष हविष्यान्न की लगातार आहुति दी जाती हैं। इन्हीं यज्ञों के माध्यम से परम पूज्य गुरुवर ने किसी भी असम्भव कार्य को सम्भव करके समाज को इनकी क्षमता का अहसास कराया है। आज इस पृथ्वी पर इन महाशक्तियज्ञों को सम्पन्न करने की पात्रता पूज्य सद्गुरुदेव जी महाराज के अलावा किसी भी तांत्रिक, मांत्रिक, योगी अथवा मठाधीश के पास नहीं है। अनेकों तंत्र-मंत्र के जानकारों ने इस यज्ञ को पूर्ण करने की कोशिश की, परन्तु सफल नहीं हुये। इसी परिप्रेक्ष्य में श्री सद्गुरुदेव जी महाराज ने एक चुनौती भी रखी थी कि ‘‘अगर कोई भी तांत्रिक, मांत्रिक, योगी, मठाधीश इन यज्ञों को सम्पन्न करके दिखा देगा, तो मैं उसकी अधीनता स्वीकार कर लूंगा और मेरा सब कुछ उसका होगा, क्योंकि अगर माता भगवती जगत् जननी जगदम्बा जी ने प्रत्यक्ष उपस्थित होकर इन महाशक्तियज्ञों को सम्पन्न करने की पात्रता का वरदान मुझे दिया है, तो दूसरा कैसे इन यज्ञों को सम्पन्न करने की पात्रता हासिल कर सकता है ? इसलिये समाज को इन महाशक्तियज्ञों की विशेषता बताना आवश्यक है।’’ उन्हीं अद्वितीय विश्वस्तरीय महाशक्तियज्ञों की शृंखला का प्रारम्भ करते हुये परम पूज्य गुरुवरश्री ने प्रथम यज्ञ दिनांक 25-07-1990 को जबलपुर में सम्पन्न करके पूर्णाहुति के दिन यज्ञ की विशेषता से अवगत कराया व इन यज्ञों की प्रामाणिकता परखने के प्रमाण भी दिये तथा 11 दिन के यज्ञ में अपनी साधनात्मक क्षमता का प्रमाण देते हुये कई छोटी-छोटी घटनाओं के माध्यम से वहाँ उपस्थित लोगों को चिन्तन प्रदान किया। यज्ञ की स्पष्ट की गयी विशेषता उस समय लोगों को आश्चर्यचकित करने वाली थी। आज जब उस शृंखला के 8 महाशक्तियज्ञ सम्पन्न हो चुके हैं, तब सत्य पूर्णतः स्पष्ट नजर आ रहा है। पूज्य गुरुदेव जी महाराज ने जब पहला यज्ञ सम्पन्न किया था, उसमें भी वर्षा हुई थी। तभी यज्ञ की व अपनी प्रामाणिकता को स्पष्ट करने की भविष्यवाणियां की थीं कि ’’मेरे द्वारा समाज के बीच सम्पन्न किए जा रहे आठ महाशक्तियज्ञों में से, जो अलग-अलग क्षेत्रों, प्रान्तों व मौसमों में किये जायेंगे, उनमें से प्रत्येक यज्ञ में वर्षा अवश्य होगी। यदि मेरे किसी यज्ञ में वर्षा न हो, तो समाज समझ ले कि मेरे अंदर इन यज्ञों को सम्पन्न करने की पात्रता व तपबल नहीं है।’’ और, जब आज आठ महाशक्तियज्ञ सम्पन्न हो चुके हैं, तो समाज को पूर्ण प्रमाण मिल चुके हैं, क्योंकि पूज्य गुरुदेव जी महाराज द्वारा सम्पन्न किए गए आठों महाशक्तियज्ञों में वर्षा अवश्य हुई है।
पहला महाशक्तियज्ञ दिनांक 25-07-1990 को जबलपुर (म.प्र.) में, दूसरा दिनांक 06-12-1990 को त्रिलोकपुर, हरियाणा में, तीसरा दिनांक 15-01-1991 को मसानारागडान, जिला-यमुनानगर, हरियाणा में, चौथा दिनांक 27-03-1991 को रानीपुर, जिला-अम्बाला, हरियाणा में, पांचवाँ दिनांक 04-04-1992 को कलेसर, जिला-यमुनानगर, हरियाणा में, छठवां दिनांक 18-10-1993 को अनूपपुर, जिला-शहडोल (म.प्र.) में, सातवां दिनांक 10-07-1994 को मानस भवन, रीवा, जिला-रीवां (म.प्र.) में तथा आठवां महाशक्तियज्ञ दिनांक 25-09-1995 को, बिन्दकी, जिला-फतेहपुर (उ.प्र.) में सम्पन्न किया गया।
इसी अंतराल में अनेकों जगह चेतना केन्द्रों की स्थापना की गई, किन्तु आठवें महाशक्तियज्ञ को सम्पन्न करने के समय चेतना केन्द्रों को स्थगित करके दिनांक 24/25-01-1996 को प्रथम शक्तिचेतना जनजागरण शिविर ब्यौहारी, जिला शहडोल (म.प्र.) में सम्पन्न किया गया। इस प्रकार लगातार एक के बाद एक शिविर दिनांक 26/27 जनवरी 1996 को पपौंध, जिला शहडोल (म.प्र.) में सम्पन्न करके, श्री गुरुदेव जी महाराज के जन्म स्थान क्षेत्र ग्राम-भदवा, तहसील-बिन्दकी, जिला-फतेहपुर (उ.प्र.) में दिनांक 21-02-1996, व यमुनानगर, हरियाणा में दिनांक 10-04-1996 को तथा मऊ, तहसील-ब्यौहारी, जिला शहडोल (म.प्र.) में दिनांक 30-07-1996 से 01-08-1996 तक एवं भुलहरा, जिला-शहडोल (म.प्र.) में दिनांक 31-08-1996 को सम्पन्न करके आठवें चेतना जागरण के क्रम को लेकर दिनांक 05-12-1996 से 12-12-1996 तक शक्तिचेतना जनजागरण सद्भावना रैली का रूप प्रदान करके समाजकल्याण के उद्देश्य से जनचेतना जाग्रत की गयी एवं अब तक हजारों शक्तिचेतना जनजागरण शिविरों के माध्यम से करोड़ों लोगों को लाभ दिया जा चुका है। साथ ही अनेकों प्रान्तों के अनेकों जिलों में श्री दुर्गा चालीसा के 24-24 घण्टे के लगभग 35000 अनुष्ठान एवं 5-5 घण्टे के 15000 अनुष्ठान एवं लाखों की संख्या में आरती क्रम कराये जा चुके हैं।
छठवें महाशक्तियज्ञ में, जो अनूपपुर, जिला-शहडोल (म.प्र.) में दिनांक 18-10-1993 से 29-10-1993 तक सामुदायिक भवन में सम्पन्न हुआ, उसकी पूर्णाहुति के बाद पूज्य गुरुदेव जी महाराज ने यज्ञस्थल पर ही माँ भगवती श्री दुर्गा जी से ’’संन्यास दीक्षा’’ प्राप्त की व भगवा वस्त्रों को धारण किया। उसी यज्ञ की पूर्णाहुति के बाद कई हजार लोगों की उपस्थिति में पूज्य गुरुदेव जी महाराज ने अपने ‘‘युग चेतना पुरुष‘‘ होने का परिचय दिया व भविष्य में अपने द्वारा किये जाने वाले जनकल्याणकारी कार्यों के विषय में अवगत कराते हुए अपने साधनात्मक तपबल के विषय में बतलाया। उसके बाद छठवें महाशक्तियज्ञ की विसर्जन यात्रा से लेकर सातवें व आठवें महाशक्तियज्ञों के यज्ञस्थल पर लाखों लोगों को उपस्थित करके साधनात्मक तपबल से सैकड़ों चमत्कारिक घटनाओं को घटित किया और कई लाख लोगों को लाभ प्रदान करके आज इतने कम समय में ‘‘माँमय’’ वातावरण निर्मित किया तथा पूरे देश में चारों तरफ साधनात्मक हलचल मचा दी है।
पूज्य गुरुदेव युग चेतना पुरुष परमहंस योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के हाथों में वे सभी 16 महत्त्वपूर्ण योग (चिह्न) मौजूद हैं, जो एक उच्चकोटि के ऋषि, योगी एवं पूर्णत्व प्राप्त महापुरुष के हाथों में होते हैं। मात्र पिछले कुछ वर्षों में समाज के बीच अनेक क्षेत्रों में किये गए जनकल्याणकारी कार्यों से अब तक करोड़ों लोग लाभान्वित हो चुके हैं। आपका जीवन किसी जाति, धर्म, सम्प्रदाय या राजनीतिक बंधन से ग्रसित नहीं है। आपके द्वारा समाज के बीच हर कदम साधनात्मक तपबल व माता भगवती के आशीर्वाद से ही उठाया जाता है।
धर्मयुद्ध की घोषणा –
देश में फैले असुरत्व के साम्राज्य के विरुद्ध श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने धर्मयुद्ध छेड़ दिया है। आपका कहना है कि आप बिना किसी अस्त्र-शस्त्र के इसे जीतकर दिखायेंगे। इसके लिये आपने भगवती मानव कल्याण संगठन का गठन किया है, जिसके तत्त्वाधान में आप शक्ति चेतना जनजागरण शिविरों का आयोजन करके जनसामान्य को जाग्रत् कर रहे हैं। ऐसे प्रत्येक शिविर में, जनसैलाब उत्तरोत्तर बढ़ रहा है। यह संख्या प्रत्येक शिविर में अब कई लाख सदस्यों से ऊपर पहुँच चुकी है। इन शिविरों में श्री गुरुदेव जी महाराज लोगों को अन्य धर्मगुरुओं की भांति कथा-कहानियां बिल्कुल नहीं सुनाते, अपितु उनमें अनीति-अन्याय-अधर्म के विरुद्ध संघर्ष करने के लिये माँ की आराधना के माध्यम से भक्तिभाव व आत्मशक्ति प्रदान करते हुये शक्तिचेतना का संचार करते हैं। साथ ही उन्हें जातिपांति से ऊपर उठने तथा पूर्णतया नशामुक्त एवं मांसाहारमुक्त जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। देश-विदेश से आये अब तक करोड़ों लोग नशा एवं मांस छोड़ चुके हैं। दूसरी ओर भगवती मानव कल्याण संगठन के लाखों सक्रिय कार्यकर्ता मिलकर अपने-अपने क्षेत्र में मासिक महाआरती एवं 24-24 घंटे और 5-5 घंटे के अखण्ड श्री दुर्गा चालीसा पाठ तथा सामूहिक आरतीक्रमों के आयोजन करके नशामुक्त एवं मांसाहारमुक्त जीवन जीने का सन्देश जन-जन तक पहुँचा रहे हैं। श्री शक्तिपुत्र जी महाराज का कहना है कि माँ भगवती की कृपा से समाज में जनजागरण का प्रवाह चल पड़ा है और इस प्रवाह को अब दुनिया की कोई भी शक्ति रोक नहीं पायेगी।
धर्म और राजनीति –
श्री शक्तिपुत्र जी महाराज के अनुसार, आज के तथाकथित धर्मगुरु प्रायः राजनेताओं की चाटुकारिता में लगे रहते हैं, ताकि उनकी कृपा से उन्हें अपने आश्रम के विस्तार हेतु धन व जमीन मिल जाये। कुछ धर्मगुरु राजनीति में पहुँच गये हैं, जबकि दूसरे अनेक इसकी जुगाड़ में हैं। इस प्रकार, राजनीति धर्म पर हावी हो गई है, जबकि वास्तव में, राजनीति को धर्म के मार्गदर्शन में चलना चाहिये।
महाराजश्री का कहना है कि उनके मार्गदर्शन में धर्म एवं राजनीति एक साथ चलेंगे। उन्हें स्वयं कभी भी राजनीति में नहीं आना है। राजनीति का बड़े से बड़ा पद उनके लिये पैर से ठोकर मारने के बराबर है। किन्तु, वे आज की बेलगाम राजनीति में लगाम अवश्य लगायेंगे। इसके लिये शीघ्र ही वे एक ’’राजनैतिक दल’’ का भी गठन करेंगे। वह दिन अब दूर नहीं, जब भगवती मानव कल्याण संगठन के सदस्य देश की बागडोर संभालेंगे।
दान एवं शुल्क के प्रति घृणा –
श्री गुरुदेव जी महाराज को दान शब्द से नफरत है। उनके अनुसार, यदि कोई धर्मगुरु दान लेता है, तो वह भिखारी बन जाता है। यदि कोई व्यक्ति दानी बनकर उन्हें करोड़ों रुपया भी देना चाहे, तो वे उसे पैर से ठोकर मारते हैं। हां, उनके द्वारा किये जा रहे जनकल्याणकारी कार्यों में सहयोगी बनकर यदि कोई समर्पण भाव से एक रुपया या अधिक भी अपनी क्षमतानुसार देता है, तो उसे सहर्ष स्वीकार करते हैं। उनके आश्रम में अन्य आश्रमों की भांति कहीं पर भी कोई दानपात्र आदि नहीं रखा है।
इसी प्रकार, अन्य आश्रमों के विपरीत, उनके आश्रम में भोजन एवं आवास की सदैव निःशुल्क व्यवस्था रहती है। शक्तिचेतना जनजागरण शिविरों की अवधि में प्रतिवर्ष लाखों लोग ठहरते हैं और भोजन करते हैं। किसी से कुछ नहीं लिया जाता। योग निःशुल्क सिखाया जाता है और यहां तक कि गुरुदीक्षा एवं गुरु मार्गदर्शन के लिये भी कोई शुल्क नहीं लिया जाता। महाराजश्री का कहना है कि यदि तुम मुझे कुछ देना ही चाहते हो, तो अपने अवगुण दे दो, ताकि तुम्हारा कल्याण हो जाय। अन्य धर्मगुरु बिना शुल्क के बात तक नहीं करते। दान के पैसे पर उनका गुजारा चलता है। किन्तु, श्री शक्तिपुत्र जी महाराज अपना तथा अपने परिवार का खर्च अपने कर्मबल के द्वारा उपार्जित धन से ही करते हैं।
कोई भेदभाव नहीं –
परम पूज्य सद्गुरुदेव जी ने बचपन से ही जातिपांति को नहीं माना है। हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई आदि सभी धर्म एवं जाति के अमीर-गरीब लोग उनके शिष्य हैं, किन्तु उनकी दृष्टि में जातिपांति अथवा छोटे-बड़े का कोई भेदभाव नहीं रहता। आश्रम में आने वाले लोगों से कभी यह पूछा भी नहीं जाता है कि वे किस जाति के हैं ? सभी लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं और परोसते भी हैं। इसी प्रकार, प्रातः-सायं दोनों समय जब वे जनसाधारण से मिलते हैं, तब भी सबसे समान भाव से मिलते हैं। धनी लोगों की अपेक्षा निर्धन लोगों की ओर उनका अधिक ध्यान रहता है। उनकी समस्याएं वे बड़े गौर से सुनते हैं तथा समुचित समाधान देते हैं।
महाराजश्री बेटे-बेटी में भी कोई भेदभाव नहीं करते। उनके अनुसार, उन्होंने माता भगवती श्री दुर्गा जी के चरणों में प्रार्थना की थी कि उनके यहां जब भी सन्तान का योग बने, तब पुत्री का ही जन्म हो। फलस्वरूप, वे स्वयं को सौभाग्यशाली मानते हैं कि उन्हें त्रिशक्तिस्वरूपा तीन पुत्रीरत्न पूजा योगभारती, संध्या योगभारती तथा ज्योति योगभारती ही प्राप्त हुये हैं। वे जनसाधारण को भी पुत्र-पुत्री में भेदभाव न करने की शिक्षा देते हैं। उनके अनुसार, इस भ्रान्ति को दूर करो कि मरणोपरान्त यदि पुत्र मुखाग्नि नहीं देगा, तो मुक्ति नहीं होगी। वास्तव में मोक्ष तो कर्मबन्धन के आधार पर अपने अच्छे-बुरे कर्मों का फल है। सन्मार्ग पर चलोगे और सत्कर्म करोगे, तो हर पल मुक्त रहोगे। पुत्र हो या पुत्री, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
त्रिशक्ति गौशाला –
श्री गुरुदेव जी महाराज को गौमाता अत्यन्त प्रिय हैं। ज्ञातव्य है कि जब आप प्रथम बार आश्रम आये थे, तो एक गाय व बछड़ा अपने साथ में लाये थे। अत्यन्त खेद का विषय है कि कृषि के मशीनीकरण के कारण किसानों ने गाय पालना बन्द कर दिया है। उधर गौहत्या बन्द नहीं हो रही है। यदि यही हाल रहा तो एक दिन गौवंश विलुप्त हो जायेगा।
इस बात से महाराजश्री व्यथित हैं। इसीलिये आपने आश्रम में त्रिशक्ति गौशाला की स्थापना की है, जो आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित है तथा इसमें आज सैकड़ों उत्तम नस्ल की गायें हैं। इस गौशाला का उद्देश्य गौवंश की रक्षा एवं संवर्द्धन है। इस गौशाला से प्राप्त दूध-घी का उपयोग आश्रम की व्यवस्थाओं में ही होता है।
विश्व आध्यात्म जगत् के आप ऐसे ऋषि महापुरुष हैं, जिन्होंने एक किसान परिवार में जन्म लेकर बिना किसी धनबल, जनबल तथा बिना किसी राजनैतिक संरक्षण एवं बिना प्रचार मीडिया का सहयोग लिये, आज इतने कम समय में पूरे देश में ऐसी हलचल मचा दी है, जिससे जहाँ एक ओर तड़पती मानवता को राहत मिली है, वहीं दूसरी ओर अनेकों मठाधीशों, राजनीतिज्ञों के बीच हलचल मच गयी है। वे जब वर्तमान में सत्य का सामना कर पाने की सामर्थ्य नहीं रखते हैं, तो अपनी निंदनीय हरकतों को अपनाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। मगर, योगीराज श्री शक्तिपुत्र जी महाराज ने उन सभी को खुली चेतावनी दे रखी है कि ‘‘मैं मान-अपमान से परे हूँ। मेरे जनकल्याणकारी कार्यों में बाधक बनकर निंदनीय हरकत करने वालों को भी बेनकाब करके मैं उन्हें कानून के कटघरे में अवश्य खड़ा करूंगा, जिससे समाज समझ सके कि धर्म का चोला पहनकर उनका शोषण करने वाले आपराधिक गतिविधियों में कौन लिप्त हैं ?’’
जय गुरुवर की ! जय माता की !