सिद्धाश्रम पत्रिका के बारे में

कहावत है कि ‘साहित्य समाज का दर्पण है।’ अतः सिद्धाश्रम पत्रिका को सिद्धाश्रम का दर्पण कहें, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। सिद्धाश्रम स्थापना के समय कुछ प्रारंभिक वर्षों तक ‘सिद्धाश्रम संदेश’ के रूप में एवं 2008 से ‘सिद्धाश्रम पत्रिका’ के रूप में पुनः प्रकाशित इस ज्ञानवर्धक पत्रिका के माध्यम से आज समाज में एक महान विचारधारा का प्रचार-प्रसार और जनजागृति का अनूठा कार्य हो रहा है।

बड़े-बड़े धर्मग्रन्थों में जो अनंत ज्ञान समाया हुआ है, उन सभी का सार ऋषिवाणी के रूप में सिद्धाश्रम पत्रिका सहज ही प्रदान करती हैं। पत्रिका में गुरुदेव जी महाराज के चिन्तनों को पढ़कर न जाने कितने लोगों का जीवन बदल गया और लोग सदा- सदा के लिए गुरुचरणों से जुड़ गए। और तो और, समाज में ऐसे भी उदाहरण दृष्टिगत हैं। कि पत्रिका के मुखपृष्ठ पर लगी गुरुदेव जी की चैतन्यता से परिपूर्ण मनमोहक छवि को देखकर अनेक लोगों ने आत्महत्या तक के विचार बदल दिये। यह अध्यात्मिक व समसामयिक पत्रिका समाज के बीच वही कार्य करती है, जो एक साहित्य का होता है। इसके माध्यम से अब तक लाखों घरों में धर्म-अध्यात्म की गंगा बह चली है और लोगों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन परिलक्षित है ।

अष्टांग योग में स्वाध्याय को दिनचर्या का अनिवार्य अंग बताया गया है। स्वाध्याय का सम्पूर्ण अर्थ है- “धर्मग्रन्थों व सत्साहित्यों के अध्ययन के द्वारा तन-मन की शुद्धि से आत्मविषयक पुरुषार्थ को जीवंत रखने की प्रक्रिया।” सिद्धाश्रम पत्रिका स्वाध्याय हेतु सर्वश्रेष्ठ साहित्य है, क्योंकि जहाँ इसकी उपलब्धता सुलभ है, वहीं इसमें समाहित विषय अत्यंत उत्कृष्ट होकर भी सरलतम रूप से वर्णित हैं। सिद्धाश्रम पत्रिका की ऐसी महिमा है कि इसका नित्य अध्ययन करने वाला व्यक्ति अपने कर्तव्यपथ से कभी भटक नहीं सकता। भटकावों, आडंबरों एवं कुरीतियों से हटकर, यह पत्रिका मानवजीवन को प्रकाशित कर, अज्ञानतिमिर को वैसे ही मिटाती है, जैसे आसमान में उदित प्रखर सूर्य अंधेरे को।

परम पूज्य सद्गुरुदेव जी महाराज के विशिष्ट चिन्तनों, अध्यात्मिक लेखों, पंचज्योति शक्तितीर्थ सिद्धाश्रम के विभिन्न आयोजनों कार्यक्रमों और भगवती मानव कल्याण संगठन व भारतीय शक्ति चेतना पार्टी की समसामयिक गतिविधियों के साथ ही आयुर्वेद व योग जैसे गूढ़ विषयों से आच्छादित यह पत्रिका स्वयं में अनूठी है। पत्रिका की सदस्यता प्राप्त लोग प्रत्येक माह सिद्धाश्रम से, जिलों में होने वाली महाआरतियों से अथवा डाक के द्वारा सिद्धाश्रम पत्रिका नियमित प्राप्तकर लाभान्वित हो रहे हैं।